sawan somvar :सावन मास में आने वाले सोमवार के दिन में भगवान शिव जी की पूजा और व्रत करना बहुत ही फलदायक माना जाता है|
सावन मास में भगवान शिव के भक्त श्रद्धा एवं भक्ति से भगवान शिवजी की उपासना करते हैं सावन के महीने में भगवान शिव जी की श्रद्धा और भक्ति करने के महत्व का ऋग्वेद में वर्णन किया गया है। इस मास में हिंदू धर्म के लोग शिव भक्ति में लीन रहते हैं। भगवान शिव के मंदिरों में शिव भक्तों की भीड़ लगी रहती है। भक्तजन दूर-दूर से जल भरकर लाते हैं और उस जल से भगवान शंकर का जलाभिषेक करते हैं।
वर्ष 2022 के अनुसार सावन माह 14 जुलाई से शुरू होगा। इस महीने में कावड़ियों के द्वारा जल लाने की यात्रा के शुरुआत की कुछ तिथियां निश्चित की जाती हैं जिन पर कावड़ियों को यात्रा करना बहुत ही शुभ कार्य माना जाता है।
सावन के सोमवार का महत्व
श्रावण माह के प्रत्येक सोमवार के दिन भगवान शिवजी की पूजा करने से व्यक्ति को समस्त सुखों की प्राप्ति होती है| श्रावण मास के बारे में एक पौराणिक मान्यता के अनुसार श्रावण मास के सोमवार के व्रत को जो व्यक्ति करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इन दिनों में किया गया दान पुण्य एवं पूजा सभी ज्योतिर्लिंगों के दर्शन के समान फलदाई होती है। इस वक्त का पालन सभी व्यक्ति अलग-अलग उद्देश्यों से करते हैं।
वैवाहिक जीवन की खुशी और संतान की सुख समृद्धि के लिए या मनोवांछित वर की प्राप्ति के लिए यह व्रत किया जाता है। सावन का सोमवार व्रत कुल में वृद्धि सुख सम्मान और लक्ष्मी की प्राप्ति देने वाला होता है। इन दिनों में भगवान शिवजी की पूजा अर्चना जब बेलपत्र चढ़ाकर की जाती है तो भगवान अपने भक्तों की इच्छा जल्द से पूरी करते हैं।
श्रावण मास की पूजा विधि
इस व्रत का आरंभ सोमवार के दिन सुबह से ही शुरू हो जाता है। प्रातः काल में उठने के पश्चात स्नान आदि से निवृत्त होकर अपने घर की सफाई करनी चाहिए। इसके उपरांत घर के ईशान कोण दिशा में भगवान शिव जी की मूर्ति या चित्र को स्थापित करना चाहिए। मूर्ति स्थापना के उपरांत सावन मास के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। सावन मास में ऐसा नहीं है कि केवल भगवान शंकर जी की ही पूजा की जाती है ,जबकि भगवान शिव शंकर की परिवार सहित उनका पूजन करना चाहिए।
सावन महीने में सोमवार के व्रत में भगवान शिव शंकर समेत देवी पार्वती को, श्री गणेश जी ,नंदी देव और नागदेव मूषकराज जी का भी पूजन करना चाहिए। पूजा की सामग्री में दूध, दही, घी, चीनी, शहद, पंचामृत, मौली, वस्त्र, जल, जनेऊ, रोली, चंदन, फूल, चावल, भांग, बेलपत्र, कमल का फूल, धतूरा, प्रसाद, लॉन्ग, पान, सुपारी, इलायची, मेवा, व दक्षिणा चढ़ाई जाती है इस दिन धूप और दीपक जगाकर कपूर से आरती करनी चाहिए।
सोमवार व्रत की पूजा करने के बाद एक बार भोजन अवश्य ग्रहण करना चाहिए ,सावन के व्रत को करने से मनुष्य को सभी सुखों की प्राप्ति होती है और दुखों से मुक्ति मिलती है। श्रावण के सोमवार व्रत को सूर्योदय से ही शुरु कर दिया जाता है और यह सूर्यास्त तक किया जाता है व्रत के दिन सोमवार की व्रत कथा अवश्य सुननी चाहिए। व्रत करने वाले व्यक्ति को दिन में सूर्यास्त के बाद एक बार भोजन करना चाहिए।
सोमवार व्रत की कथा
जैसा कि आप जानते है कोई भी उपवास बिना व्रत की कथा के अधूरा माना जाता है। यहां पर आप जानेंगे सावन सोमवार व्रत की पवित्र कथा।
प्राचीन समय की बात है एक साहूकार था जो भगवान शिव का भगत था। उसके पास धन वैभव आदि की कोई भी कमी नहीं थी परंतु वह संतान के ना होने से बहुत ही परेशान रहता था | इसी मनोकामना को लेकर वह भगवान शिव जी के मंदिर में रोजाना दीपक जलाने जाता था और उसकी बड़ी श्रद्धा से पूजा करता था। उसके भक्ति और श्रद्धा को देखकर एक दिन माता पार्वती जी ने भगवान शिव शंकर जी से कहा कि हे प्रभु यह साहूकार आपका बहुत बड़ा भक्त है। आपको इसकी मनोकामना पूर्ण करनी चाहिए तो भगवान शिव शंकर बोले की हे पार्वती इस साहूकार के पास कोई भी पुत्र नहीं है जिस कारण से यह बहुत ही परेशान रहता है।
माता पार्वती जी ने निवेदन किया कि हे ईश्वर अपनी कृपा करके आप इसको पुत्र का वरदान दीजिए। तब भगवान शिव शंकर जी ने कहा कि है पार्वती इसके भाग्य में तो पुत्र का योग है ही नहीं ऐसे में अगर इसको पुत्र की प्राप्ति का वरदान मिल भी जाए तो उसका पुत्र केवल 12 वर्ष तक ही जीवित रह पाएगा। यह सुनने के बाद भी माता पार्वती जी ने भगवान शिव शंकर जी से यही बात कही कि हे ईश्वर आप इस साहूकार को पुत्र का वरदान देने की कृपा करें। माता पार्वती के बार बार कहने पर भगवान शिव शंकर जी ने साहूकार को पुत्र होने का वरदान प्राप्त किया। लेकिन साथ ही यह भी बता दिया कि यह पुत्र केवल 12 वर्ष तक ही जीवित रहेगा।
साहूकार ने यह पूरी बात सुनी इसीलिए मैं तो उसको दुख ही हुआ और ना ही कोई खुशी हुई। वह तब भी पहले की तरह ही भगवान शिव शंकर की पूजा आराधना करता रहा। भगवान शिव शंकर जी के आशीर्वाद से साहूकार को बहुत ही सुंदर और सुशील पुत्र की प्राप्ति हुई। परिवार में बहुत ही खुशी का माहौल छाया हुआ था लेकिन साहूकार ने बच्चे की 12 वर्ष की आयु का जिक्र किसी से भी नहीं किया। जब वह साहूकार का पुत्र 11 वर्ष का हुआ तब एक दिन साहूकार की पत्नी ने उस साहूकार से बालक के विवाह की इच्छा जताई।
तभी साहूकार ने कहा कि वह अभी अपने पुत्र को पढ़ने के लिए काशी जी भेजेंगे। साहूकार ने बालक के मामा जी को बुलाया और कहा कि इसे काशी पढ़ने के लिए अपने साथ लेकर जाओ और रास्ते में जहां-जहां भी रुकना वहां यज्ञ कराना और ब्राह्मणों को भोजन कराना उसके उपरांत ही आगे बढ़ना। साहूकार की ऐसी इच्छा और आज्ञा का पालन करते हुए साहूकार का पुत्र और उसका मामा चल दिए और आज्ञा के अनुसार यज्ञ करते हुए और ब्राह्मणों को भोजन कराते हुए चले| वही मार्ग पर आगे बढ़ते हुए वह दोनों एक ऐसी जगह पर जा पहुंचे जहां पर की एक राजकुमारी की शादी हो रही थी| तभी लड़की के पिता की नजर उस साहूकार के पुत्र पर पड़ी और उसने मन ही मन यह विचार किया कि क्यों ना इसे ही घोड़े पर बिठाकर शादी का कार्य संपन्न कर लिया जाए।
तो उन्होंने साहूकार के बेटे के मामा से इस बारे में बात की और कहा कि इसके बदले में वह उन्हें अपार धन देंगे जिससे कि वह राजी हो गए। इसके बाद साहूकार का बेटा विवाह की बेदी पर बैठ गया और जब विवाह हो गया तो उनके जाने से पहले ही राजकुमारी की चुन्नी के पल्ले पर लिखा कि तेरा विवाह तो मेरे साथ हुआ है लेकिन जिस राजकुमार के साथ तुझे भेजेंगे वह तो एक आंख का गाना है तभी राजकुमारी ने अपनी चुन्नी पर यह लिखा हुआ पाया तो उसने राजकुमार के साथ जाने से मना कर दिया और बारात वापस लौट गई उधर मामा और भांजे काशी जी पहुंच गए थे। एक दिन जब मामा ने यज्ञ रचा रखा था और भांजा बहुत देर तक बाहर नहीं आया तब मामा ने अंदर जाकर देखा कि उसके भांजे की तो मृत्यु हो चुकी है।
वह बहुत परेशान हुआ लेकिन उसने सोचा कि अभी मैंने रोना पीटना मचा दिया तो ब्राह्मण चले जाएंगे और उनके यज्ञ का कार्य पूरा नहीं हो पाएगा और फिर भांजे के दुख में कार्य के संपन्न होने के बाद रोने पीटने लगा। उसी समय शिवजी और पार्वती उधर से जा रहे थे तो माता पार्वती जी ने भगवान शंकर से पूछा कि हे प्रभु यह कौन रो रहा है? तभी तभी उन्हें इस बात का पता चला कि यह वह तो वही साहुकार का पुत्र है जिसकी उम्र केवल 12 वर्ष तक ही थी।
तभी माता पार्वती ने भगवान शिव शंकर जी से विनय किया कि हे प्रभु इस बालक को जीवित कर दीजिए। बालक ओम नमः शिवाय कहकर जीवित हो गया तभी मामा और भांजे दोनों ने ही ईश्वर का धन्यवाद किया और वह अपने नगरी को वापस लौटने लगे उधर साहूकार और उसकी पत्नी छत पर बैठे अपने पुत्र का इंतजार कर रहे थे और उन दोनों ने प्रण ले रखा था कि अगर हमारा पुत्र सकुशल वापस नहीं आया तो हम अपना जीवन त्याग देंगे |
तभी मामा ने उनके पास साहूकार के पुत्र और उसकी बहू के आने का समाचार सुनाया जिसको सुनकर साहूकार और उसकी पत्नी बहुत ही प्रसन्न हुए और अपने बेटा बहू का स्वागत किया। तभी भगवान शिव शंकर ने साहूकार के स्वप्न में दर्शन देते हुए उसे बताया कि मैं तुम्हारी पूजा-अर्चना से बहुत प्रसन्न हुआ इसी प्रकार जो भी इस कथा को पड़ता यह सुनता है भगवान शिवजी उसकी हर मनोकामना को पूर्ण करते हैं तथा उसकी सभी परेशानियों को दूर कर देते हैं|
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