Krishna Janmastmi 2021:भारत में ही नहीं बल्कि दूसरे देशों में भी जन्माष्टमी पर बहुत ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है| इस दिन कृष्ण जी के भक्त व्रत रखते हैं, और कन्हैया जी के जन्मदिन की खुशियां मनाते हैं | इस दिन भक्त मध्य रात्रि में कान्हा जी का श्रृंगार करते हैं| उन्हें भोग लगाते हैं ,और उनकी पूजा आरती करते हैं | इसके उपरांत सभी मंदिरों में श्री कृष्ण जी के जन्म की पावन कथा सुनाई जाती है |
Krishna Janmastmi 2021 : जन्माष्टमी व्रत का महत्त्व
वैसे तो हर वर्ष ही जन्माष्टमी का पर्व एक ख़ास रूप में मनाया जाता है | परंतु इस बार की खास बात यह है कि श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व 27 साल बाद एक ही दिन मनाया जाएगा |
बाबा जानकी दास मंदिर के मुख्य पुजारी ,पंडित राजकुमार शास्त्री जी के अनुसार ,”भगवान श्री कृष्ण जी का जन्म भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था |
इस वर्ष यह तिथि 30 अगस्त को है | यह तिथि 29 अगस्त की रात 11:27 से 30 अगस्त की 01:59 बजे तक रहेगी | 30 अगस्त की सुबह 6:38 से 31 अगस्त की सुबह 9:43 तक रोहिणी नक्षत्र बना रहेगा | प्रत्येक साल स्मार्त और वैष्णव दोनों अलग-अलग जन्माष्टमी होती थी “| इसका एक मुख्य कारण यही था कि, वैष्णव की उदय तिथि और स्मार्त की वर्तमान तिथि को यह त्यौहार मनाया जाता है |
पुजारी जी ने बताया कि , “रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी इस वर्ष एक साथ पड़ रहे हैं , जिसे की जयंती योग माना जाता है | इसीलिए यह महासंयोग बहुत ही बेहतर है | द्वापर युग में जब श्री कृष्ण भगवान जी का जन्म हुआ था ,तब भी यही जयंती योग पड़ रहा था | इस बार यह संयोग जन्माष्टमी के दिन ही है ,तो इस महासंयोग को बहुत ही शुभ माना जा रहा है | “
आचार्य जी ने यह भी बताया कि, जन्माष्टमी की तिथि में जिस दिन सूर्योदय होता है ,उसी दिन जन्म उत्सव मनाया जाता है जिस तारीख को भी अष्टमी लगती है उसी तारीख में जन्माष्टमी का आयोजन भी किया जाता है | इस वर्ष अष्टमी की तिथि 30 अगस्त को है, इसीलिए 30 अगस्त को ही जन्माष्टमी का पर्व मनाया जा रहा है।
जन्माष्टमी का व्रत करने वाले भक्तों को इस दिन सुबह ही स्नान करके सूर्य यम सॉन्ग संधि काल पवन भूत देव पति अकाश भूमि खेचर अमर और ब्रह्मा आदि को नमस्कार करना चाहिए और सिर्फ उत्तर या पूर्व की दिशा में मुंह करके बैठे इसके उपरांत इस मंत्र का जाप करते हुए ‘ममाखिलपापप्रशमनपूर्वकसर्वाभीष्टसिद्धये श्रीकृष्णजन्माष्टमीव्रतमहं करिष्ये’ व्रत को करने का संकल्प ले |अगर आप इस व्रत का उच्चारण करने में सक्षम नहीं है तो ,’श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी ,हे नाथ नारायण वासुदेव ‘ का जाप करें | इस व्रत में आप चाहे ,तो फल आदि ग्रहण कर सकते हैं |
कुछ भक्त इस व्रत को निर्जला भी रखते हैं | जन्म अष्टमी के दिन पूजा रात को 12:00 बजे की जाती है | यह भी माना जाता है कि इस व्रत को रखने से व्यक्ति के सभी दुख ,कष्ट दूर होते हैं | उसकी मनोकामना पूर्ण होती है | यह व्रत कुछ भक्त संतान को दीर्घायु की प्राप्ति के लिए भी रखते हैं
जन्माष्टमी व्रत कथा
सकंद पुराण के अनुसार, द्वापर युग की बात है | उस समय मथुरा में अग्रसेन नाम का एक महा प्रतापी राजा होता था | परंतु वह स्वभाव से बहुत ही सीधा साधा होने की वजह से ,उसके अपने ही पुत्र कंस ने उसका राज्य हड़प लिया और खुद मथुरा का राजा बन कर बैठ गया |
राजा के बेटे कंस की एक बहन भी थी जिनका नाम था , देवकी | कंस उससे अत्यधिक प्रेम करता था | जब देवकी का विवाह वासुदेव से तय हो गया और विवाह संपन्न हुआ तो उसके बाद कंस अपनी बहिन और जीजा को स्वयं ही रथ से ससुराल छोड़ने के लिए रवाना चल पड़ा | जब वह अपनी बहन को छोड़ने के लिए जा रहे थे, तभी एक भीषण आकाशवाणी हुई कि “वासुदेव और देवकी की आठवीं संतान होगी वह कंस की मृत्यु का कारण बनेगी” |
यह आकाशवाणी सुनते ही ,कंस को क्रोध आ गया |वह देवकी और वासुदेव को मारने ही वाला था कि ,तभी वासुदेव ने कहा कि “कंस,आप देवकी को कोई भी नुकसान ना पहुचाये ,मै स्वयं ही देवकी की आठवीं संतान होने के बाद आपको सौंप दूंगा”| इसके उपरांत कंस ने जानकी और वासुदेव को मारने की बजाय उन्हें कारागार में डाल दिया | कारागार में ही देवकी ने अपनी सातों संतानों को जन्म दिया और कंस ने सभी संतानों को एक-एक करके मार डाला |
इसके बाद जैसे ही देवकी गर्भवती हुई , तब कंस ने कारागार का पहरा बहुत ही कड़ा कर दिया | तभी भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में श्री कृष्ण जी का जन्म हुआ | तभी विष्णु जी ने वासुदेव को दर्शन देते हुए कहा कि ,”वह स्वयं ही उनके पुत्र के रूप में हैं |
इसीलिए उन्होंने वासुदेव से कहा कि ” वासुदेव जी इस बालक को आप वृंदावन में अपने मित्र नंद बाबा के घर पर छोड़ आए और यशोदा माता जी के गर्भ में जिस कन्या का जन्म हुआ है ,उसे कारागार में ले आए ” | यशोदा माता जी के गर्भ से जन्म हुई कन्या कोई और नहीं थी बल्कि वह स्वयं भी एक माया थी | यह सब कुछ सुनने के बाद वासुदेव जी ने वैसा ही किया ,जैसा कि उन्हें विष्णु भगवान जी ने कहा था |
स्कंद पुराण के अनुसार , जब देवकी की आठवीं संतान के बारे में कंस को पता चला तो, वह कारागार में पहुंचा और उसने वहां देखा कि देवकी की आठवीं संतान तो एक कन्या है | फिर भी वह उसे जमीन पर पटकने ही लगा था कि ,वह माया रूपी कन्या आसमान में पहुंचकर बोली कि “ए मूर्ख ,मुझे मारने से तुझे कुछ भी हासिल नहीं होगा तेरा काल तो पहले ही वृंदावन में पहुंच चुका है और वह जल्दी तेरा अंत कर देगा” |
इसके बाद कंस ने वृंदावन में जन्म लेने वाले सभी नवजातों का पता किया | जब यशोदा माता के लल्ला का पता चला तो, उसे मारने के लिए कंस ने कई प्रयास किए| कई राक्षसों को भेजा , लेकिन कोई भी उस बालक का बाल भी बांका नहीं कर पाया | उसके बाद कंस को एहसास हो गया कि ‘ नंदबाबा का बच्चा ही देवकी वासुदेव की आठवीं संतान है ‘ |
श्री कृष्ण जी ने युवावस्था में कंस का अंत किया | इस तरह से जो भी इस कथा को पड़ता है या सुनता है उसके समस्त पापों का नाश हो जाता है ,और श्री कृष्ण भगवान उसकी मनोकामना को पूर्ण करते हैं | जय श्री कृष्ण |
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